लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1
20. गोधूलि बेला
आज गोधूलि और बेला फिर से लड़ पड़ीं । वैसे उन दोनों में लड़ाई होना नित्य कर्म के जैसा है । बल्कि यह कह सकते हैं कि यह उनका अनवरत क्रम है । ऐसी कौन सी बात है जिस पर लड़ाई नहीं होती है उनमें । घर में सब्जी क्या बनेगी से लेकर बाबू सुंदर शरण के सोने का कमरा निर्धारण तक को लेकर लड़ाई होती है दोनों में । जिस तरह बाल गंगाधर तिलक ने आजादी के आंदोलन में नारा दिया था कि "स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा" । उसी तर्ज पर गोधूलि और बेला का भी नारा है कि "लड़ाई हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम लड़कर ही रहेंगी" । बस, अपने नारे के अनुरूप वे दोनों हरदम लड़तीं रहतीं हैं । कभी आपस में लड़ती हैं तो कभी बाबू सुंदर शरण से । बाहर लड़ने में जोखिम बहुत ज्यादा है । उसमें हारने के अवसर बहुत ज्यादा हैं
लड़ाई कभी अकारण नहीं होती है । यहां तो कारणों का खजाना था । हुआ यूं कि बाबू सुंदर शरण की शादी तभी हो गयी थी जब वे पढ़ रहे थे । उनकी मां को जल्दी से बहू का मुंह देखना था इसलिए उनकी शादी गोधूलि से हो गयी । गोधूलि कम पढ़ी लिखी ग्रामीण परिवेश की लड़की थी । लेकिन थी संस्कारी । थोड़ी सांवली सी थी । बाबू सुंदर शरण एकदम गोरे चिट्टे । दोनों की जोड़ी बिल्कुल राधा कृष्ण की तरह थी । बस यहां पर राधा सांवली और कृष्ण गोरे गोरे थे ।
पढ़ाई लिखाई के बाद बाबू सुंदर शरण सरकारी महकमे में बाबू बन गये । सोने पे सुहागा हो गया । एक तो बाबू सुंदर शरण एकदम गोरे चिट्टे उस पर,सरकारी बाबू । रेयर कॉम्बिनेशन था । बाबू सुंदर शरण के आगे पीछे लड़कियां इस प्रकार मंडराने लगीं जैसे श्रीकृष्ण के चारों ओर गोपियाँ मंडराती रहती थीं । बाबू सुंदर शरण भी बड़े छैला बाबू थे । उन्होंने भी अपनी आंखों के पेच लड़ाने शुरू कर दिये । बेला ने उन्हें तिरछी निगाहें से निमंत्रण भेजा और कातिल मुस्कान से अपने दिल का दरवाजा खोल दिया । खुले दरवाजे में तो कोई भी प्रवेश सकता है । इसलिए बाबू सुंदर शरण उसमें प्रवेश कर गये । बेला ने पलक पांवड़े बिछाकर उनका स्वागत किया । दोनों में प्रेम की पींगें बढ़ने लगीं । दोनों अक्सर नदी झरनों के किनारे प्रेम गीत गाते हुए देखे जाने लगे ।
एक दिन बाबू सुंदर शरण ने बेला को बता दिया कि वे पहले से शादीशुदा हैं । बस, फिर क्या था ? खूब चंपी हुई बाबूजी की । झाड़ू, चकला, बेलन, चिमटा सब टूट गये । रोना धोना हुआ सो अलग । मगर बेला भारतीय लड़की थी । माना कि वह बहुत पढ़ी लिखी थी मगर थी तो संस्कारवान । एक बार जिसे दिल से अपना पति मान लिया सो मान लिया । रूठना मनाना , लड़ाई भिड़ाई किस परिवार में नहीं होती है ? बाबू सुंदर शरण का दोष इतना ही तो था कि उनके एक पत्नी पहले से ही थी । तो इसमें क्या बड़ी बात हैं ? बड़े लोगों की तो पहचान ही यही है । जितने ज्यादा बड़े उतनी ज्यादा पत्नी । और बाबू सुंदर शरण हैं ही ऐसे । इसमें उनका क्या दोष ? आखिर मान मनोव्वल के बाद दोनों ने गंधर्व रीति से विवाह कर लिया ।
जब बाबू सुंदर शरण नई नवेली दुल्हन बेला को लेकर घर पहुंचे तो दोनों वर वधू को देखकर गोधूलि बिफर गयी और उसने बाबूजी का फिर से बेलन चिमटों और झाड़ू - डंडे से शानदार स्वागत किया । बाबू सुंदर शरण जितने सुंदर हैं उससे कहीं अधिक बेशर्म भी हैं । वैसे सरकारी कर्मचारी बनते ही यह गुण हर एक आदमी भें आ ही जाता है । फिर बेला को रोज रोज कोई न कोई उपहार भी तो चाहिए था और तनख्वाह इतनी मिलती नहीं थी कि उसमें से उपहार खरीद सकें बाबू सुंदर शरण । इसलिए इस काम के लिए उन्होंने "ऊपरी कमाई" का दरवाजा खोल दिया था । बस, तबसे उनके जीवन में बेशर्मी का अध्याय शुरू हो गया ।
पहले तो गोधूलि समझ ही नहीं पाई थी कि उसे करना क्या है ? उसने अपने ज्ञान के गुरुकुल अपनी "मां" से सलाह मशविरा किया । मां ने समझाया कि बाबू सुंदर शरण सरकारी महकमे में बाबू हैं । अब तो वे बड़े बाबू भी बन गए हैं । कल वे अधिकारी भी बन जायेंगे । दूध देती गाय हैं बाबूजी । भला दूध देती गाय को कौन छोड़ता है ? और वो बेला क्या कर लेगी ? बहुत से बहुत यही होगा न कि बाबू सुंदर शरण का बंटवारा हो जायेगा ? तो कर ले बंटवारा । एक टाइम तेरी रसोई में खाना खायेंगे तो दूसरे टाइम बेला की रसोई में खा लेंगे । तुझे भी घर का आधा काम ही करना पड़ेगा । रही बात सोने की तो एक दिन तेरे पास सो जायेंगे तो दूसरे दिन बेला के पास । और उस दिन "ऑड ईवन" का फार्मूला निकल गया । ऑड तारीख यानि एक, तीन, पांच, सात को गोधूलि के पास और दो, चार, छ, आठ को बेला के पास सोने का फरमान जारी हो गया । उन तीनों के बीच की यह अलिखित संधि "जयपुर संधि" के नाम से इतिहास प्रसिद्ध है । इस संधि से घर में अस्थायी शांति स्थापित हो गयी और समस्या का फौरी समाधान हो गया । तब से बाबू सुंदर शरण गोधूलि और बेला दोनों के साथ रह रहे हैं ।
आज झगडे का कारण बहुत छोटा सा था । एक नई फिल्म आई थी "सूर्यवंशम" । गोधूलि और बेला दोनों ने ही उसे देखने की मांग कर दी । बाबूजी ने तीन टिकट ऑनलाइन बुक कर दिये । जब सीट पर बैठने लगे तब झगड़ा शुरू हुआ । गोधूलि कहने लगी कि वह वाम अंग वाली सीट पर बैठेगी क्योंकि वह एक वैध पत्नी है , पटरानी है । बेला कहने लगी कि वह बैठेगी क्योंकि वह छोटी है और छोटे बच्चों से पहले उनकी चॉइस पूछी जाती है और उनकी चॉइस के अनुसार उनकी इच्छा पूर्ति की जाती है । बाकी लोग एडजस्ट कर लेते हैं ।
सिनेमा हॉल में मजमा लग गया था । पिक्चर शुरू हो चुकी थी मगर गोधूलि और बेला अपना "काव्य पाठ" करने में व्यस्त थीं । इस मौके का फायदा उठाकर बाबू सुंदर शरण चुपके से एक खाली सीट पर जा बैठे । उनको अकेला देखकर एक "सिंगल महिला" उनकी बगल में आकर बैठ गयी ।
और फिर से कातिल आंखों और मनमोहक मुस्कान का सिलसिला चल निकला । यह सिलसिला कहां तक जायेगा यह गोधूलि और बेला को पता नहीं था । बेचारी ।
दशला माथुर
20-Sep-2022 12:50 PM
Bahut khub 👌
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Chudhary
14-Jul-2022 11:00 PM
Nice
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shweta soni
12-Jul-2022 08:16 PM
Bahot hi achhi rachna
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